परीक्षा में ये प्रश्न ऐसे ही दिमाग घुमा देते है ….
परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाने वाले महासागरीय धाराओं के प्रश्न कई बार परीक्षार्थी को कनफुजिया देते है। जैसे ठंडी धरा और गर्म धारा उनका नाम ,किस महासागर में बहती है या किस गोलार्ध में है या किस महाद्वीप या देश के तट पर बहती है – तो आइये इस टॉपिक में आज हम समझेंगे कि-
इ महासागरीय धारा की उत्पत्ति कइसे होता है
इ ठंडा और गर्म का क्या चक्कर है ।
किस बल के कारण इ गतिमान होता है
इसके पीछे कौन कौन लोग है।
इनको क्या क्या कहा जाता है |
जब महासागरों के जल की बहुत बड़ी मात्रा एक निश्चित दिशा में लंबी दूरी तक सामान्य गति से बहने लगती है तो उसे महासागरीय धारा कहते हैं,सामान्यतः ये दो प्रकार की होती है गर्म धारा और ठंडी धारा
पृथ्वी के बीचों बीच से गुजरने वाली शून्य(0) डिग्री अक्षांश काल्पनिक रेखा को विषुवत रेखा कहते है तथा इसके उत्तरी भाग को उत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी भाग को दक्षिणी गोलार्ध कहते है |(The imaginary line, the zero degree latitude passing through the middle of the earth, is called the equatorial line. Its northern part is called Northern Hemisphere and Southern part is called Southern Hemisphere.)
जैसा कि आप उपरोक्त चित्र में देख रहे कि सूर्य कि किरणें विषुवत रेखा और उसके आसपास के क्षेत्रों में पुरे वर्ष लगभग लंबवत पड़ती है ,जिसके कारण तापमान उच्च रहता है और महासागर का जल भी गर्म रहता है । जबकि इसके विपरीत ध्रुवों पर किरणें या तो तिरछी पड़ती है या पहुँचती नहीं है यही कारण है कि ध्रुवों पर पानी बर्फ के रूप में जमा होता है।जिन्हे हम ग्लेशियर भी कहते है ।
इसीलिए विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर प्रवाहित होने वाली धाराएँ गर्म और ध्रुवों से विषुवत रेखा की ओर बहने वाली धाराएँ ठंडी होती हैं।
महासागरों में धाराओं की उत्पत्ति कई कारणों से होती है, आइये देखते है ये प्रमुख कारण क्या है –
पृथ्वी की घूर्णन गति(Earth’s rotation speed) *
लवणता(Salinity)**
समुद्री जल का घनत्व (Seawater Density)
वायुदाब एवं प्रचलित हवाएँ(Atmospheric pressure and prevailing winds)
वर्षा की मात्रा एवं वाष्पीकरण में भिन्नता (Variation in rainfall and evaporation)
पृथ्वी की घूर्णन गति(Earth’s rotation speed) * – पृथ्वी के घूर्णन गति के कारण कोरिओलिस बल का निर्माण होता है जिससे कोरिओलिस बल के प्रभाव से उत्तरी गोलार्द्ध की धाराएँ अपने दाईं ओर एवं दक्षिणी गोलार्द्ध की धाराएँ अपने बाईं ओर प्रवाहित होती हैं।
इस घूर्णन के कारण ही कोरिओलिस बल(CoriolisForce) उत्पन्न होता है।
लवणता(Salinity)**-जल में घुली हुई नमक की मात्रा को लवणता(Salinity) कहते है | महासागरों की औसत लवणता (Average Salinity) 35 होती है ।
आइये अब चुन चुन के इनके नाम याद करते है –
प्रशांत महासागर की गर्म और ठंडी धाराएँ
महाद्वीप/देश
उत्तरी अमेरिका
दक्षिणी अमेरिका
जापान
ऑस्ट्रेलिया/न्यूजीलैंड
गर्म धारा
North Equatorial Current
South Equatorial Current ,El-Nino
क्यूरो शिओ
East Australia Current
ठंडी धारा
कैलिफ़ोर्निया धारा
पेरू की धारा
ओरो शिओ
West Wind Drift
अटलांटिक महासागर की गर्म और ठंडी धाराएँ
महाद्वीप/ देश
उत्तरी अमेरिका
दक्षिणी अमेरिका
अफ्रीका
ग्रीनलैंड *
गर्म धारा
गल्फ स्ट्रीम
ब्राज़ील धारा
गिनी की धारा
–
ठंडी धारा
लैब्राडोर
फ़ॉकलैंड धारा
बेंगुला , कनारी (from north)
पूर्वी ग्रीनलैंड
हिन्द महासागर में बहने वाली मुख्य गर्म धारा का नाम “अगुलहास” है ,जो अफ्रीका के पूर्वी तट और मेडागास्कर द्वीप के बीच में चलती है ।
गर्म व ठंडी महासागरीय धाराएँ जिन स्थानों पर मिलती हैं, वहाँ प्लेंकटन नामक समुद्री घास के विकास से यहाँ भारी मात्रा में मछलियाँ पायी जाती है जिससे इन स्थानों पर बड़े पैमाने पर मत्स्यन होता हैं। उदहारण – न्यूफाउंडलैंड(उत्तरी अमेरिका) के निकट ग्रैंड बैंक, जहाँ गल्फ स्ट्रीम और लेब्राडोर धाराएँ मिलती हैं।
आशा करते है कि यह टॉपिक आपको काफी हद तक समझ में आया हो।
मूल रूप से संविधान में केवल 8 अनुसूची थी वर्तमान में 12 अनुसूची है | आएये इन्हे एक एक करके समझते है-
प्रथम अनुसूची – इसमें भारतीय संघ तथा घटक राज्यों(28) और संघ शासित प्रदेशो(8) का उल्लेख है ।
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द्वितीय अनुसूची- इसमें भारतीय राज्य के विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति ,राज्यपाल,लोकसभा के अध्यक्ष ,और उपाध्यक्ष ,राज्यसभा के सभापति और उपसभापति ,विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ,विधानपरिषद के सभापति और उपसभापति,उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और भारत के महालेखा नियंत्रक परीक्षक आदि को प्राप्त होने वाले वेतन और भत्ते और पेंशन आदि का उल्लेख किया गया है )
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तृतीय अनुसूची – इनमे विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति ,उपराष्ट्रपति ,मंत्री,उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आदि ) द्वारा पद ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का उल्लेख है ।
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चतुर्थ अनुसूची – इसमें विभिन्न राज्यों तथा संघीय क्षेत्रो से राज्यसभा में प्रतिनिधित्व का वर्णन किया गया है । मतलब किस राज्य अथवा UT से कितनी सीटे राज्यसभा में होनी चाहिए ।
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पांचवी अनुसूची- इसमें विभिन्न राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में उल्लेख है।
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छठवीं अनुसूची – इसमें असम ,मेघालय ,त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारें में प्रावधान है ।
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सातवीं अनुसूची – इसमें केंद्र और राज्यों के बीच विभिन्न विषयों पर कानून बनाने की शक्ति के बंटवारे का उल्लेख है इसे तीन भागों में बांटा गया है संघ सूची(Union List)-इसपर केंद्र सरकार कानून बनाती है ।इसमें 97 विषय है। जैसे – संचार राज्य सूची(State List)-इसपर राज्य सरकार कानून बनती है । इसमें 66 विषय है । जैसे- पुलिस समवर्ती सूची(Concurrent List)– इसपर दोनों कानून बना सकते है लेकिन टकराव की स्थिति में केंद्र सरकार का कानून मान्य होता है ,इसमें 47 विषय है । जैसे -शिक्षा
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आठवीं अनुसूची- इसमें भारत की 22 भाषाओं का उल्लेख किया गया है जिन्हे संवैधानिक दर्जा प्राप्त है। मूल रूप से केवल 14 भाषाएँ थी लेकिन 1967 मेंसिंधी , 1992 में कोंकणी ,मणिपुरी,और नेपाली 2004 में मैथिली ,संथाली,डोगरी और बोडो को अनुसूची में शामिल किया गया ।
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नवीं अनुसूची- संविधान में यह अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम ,1951 के द्वारा जोड़ी गयी । इसके अंतर्गत राज्य द्वारा संपत्ति के अधिग्रहण की विधियों का उल्लेख किया गया है। इन अनुसूची में सम्मिलित विषयों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। वर्तमान में इस अनुसूची में 284 अधिनियम हैं।जिनकी न्यायिक समीक्षा सुप्रीम कोर्ट के नीचे दिए गए फैसले से पहले संभव नहीं थी।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला — 11 जनवरी, 2007 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाई के सभरवाल की अध्यक्षता वाली 9 सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला दिया कि संविधान के भाग-3 में प्रदत्त मौलिक अधिकार संविधान के मूल ढाँचे का अहम हिस्सा हैं। इनका किसी भी तरीके से उल्लंघन किये जाने पर न्यायालय इसकी समीक्षा कर सकता है।
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दसवीं अनुसूची – यह संविधान में 52 वें संविधान संशोधन अधिनियम ,1985 के द्वारा जोड़ी गयी ,इसमें दल-बदल से सम्बंधित कानूनों का उल्लेख है ।
(90 के दशक में बिन पेंदी का नेता लोग इधर उधर बहुत पार्टी बदलता था)
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ग्यारहवीं अनुसूची – यह संविधान में 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम ,1993 के द्वारा जोड़ी गयी। इसमें पंचायती राज्य के कार्यो से सम्बंधित 29 विषय है । (जी हां ! परधानी वाला चुनाव् )
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बारहवीं अनुसूची – यह संविधान में 74 वें संविधान संशोधन अधिनियम ,1993 के द्वारा जोड़ी गयी। इसमें शहरी क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को कार्य करने के लिये 18 विषय प्रदान किए गए हैं|
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संसद के दैनिक कार्य का समय सुबह 11 बजे से लेकर शाम के 5 बजे तक होता है । आइये जाने है क्या क्या प्रक्रियाएं होती है
प्रश्नकाल (Question Hour)– संसद का पहला घंटा प्रश्नकाल के लिए होता है ,सदस्य प्रश्न पूछते है ,सामान्यतः मंत्री उत्तर देते है। प्रश्न- तारांकित ,अतारांकित आदि ।
तारांकित प्रश्न (Starred Questions): ऐसे प्रश्नों का उत्तर मंत्री द्वारा मौखिक रूप में दिया जाता है एवं इन प्रश्नों पर अनुपूरक प्रश्न (Supplementary Questions) पूछे जाने की अनुमति होती है।
अतारांकित प्रश्न (Unstarred Questions): ऐसे प्रश्नों का उत्तर मंत्री द्वारा लिखित रूप में दिया जाता है एवं इन प्रश्नों पर अनुपूरक प्रश्न पूछने का अवसर नहीं मिलता है।
अल्पसूचना प्रश्न (Short Notice Questions): ऐसे प्रश्नों का संबंध किसी लोक महत्त्व के तात्कालिक विषय से होता है, इनका उत्तर भी मौखिक रूप से दिया जाता है एवं इस पर पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
निजी सदस्यों से पूछा जाने वाला प्रश्न: ऐसे प्रश्न उन सदस्यों से पूछे जाते हैं, जो मंत्रिपरिषद के सदस्य नहीं होते, किंतु किसी विधेयक, संकल्प या सदन के किसी विशेष कार्य के लिये उत्तरदायी होते है।
5वीं लोकसभा के दौरान वर्ष 1972 से तारांकित प्रश्नों की सूची में प्रश्नों की संख्या को 20 पर सीमित कर दिया गया था।
शून्यकाल (Zero Hour) यह संसदीय प्रक्रिया प्रश्नकाल के तुरंत बाद शुरू होती है तथा 12 से 1 के बीच होती है इसलिए इसे शून्यकाल कहते है।
विशेषाधिकार प्रस्ताव( Privilege Motion ) – विशेषाधिकार प्रस्ताव तब लाया जाता है जब संसद के किसी सदस्य पर विशेषाधिकार के उल्लंघन का आरोप हो। न्यायपालिका संसद के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती इसलिए अगर कोई सांसद अपने विशेषाधिकारों का दुरुपयोग करता है तो संसद कानूनी प्रक्रिया द्वारा उसके खिलाफ कार्यवाही करती है, इसे ही विशेषाधिकार प्रस्ताव कहा जाता है।
स्थगन प्रस्ताव(Stay motion ) यह किसी अविलम्बनीय लोक महत्व के मामले पर सदन में चर्चा करने के लिए ,सदन की कार्यवाही को स्थगित करने का प्रस्ताव है ,इसके लिए 50 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है ।
ध्यानाकर्षण प्रस्ताव ( Calling Attention ) यह संसद के किसी सदन के पीठासीन अधिकारी के पूर्व अनुमति से, किसी मंत्री का ध्यान अविलम्बनीय लोक महत्व के किसी मामले पर आकृष्ट करना है ।
विश्वास प्रस्ताव (Confidence Motion) लोकसभा में सरकार कि दावेदारी रखने का तथा बहुमत को सिद्ध करने हेतु ,विश्वास प्रस्ताव पेश किया जाता है ।
अविश्वास प्रस्ताव(No-Confidence Motion) अनुच्छेद 75 में कहा गया है कि मंत्री परिषद् लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है इसका अर्थ यह है कि मंत्रिपरिषद तभी तक है जब तक उसे सदन में बहुमत प्राप्त है ,यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है।इसके समर्थन के प्रस्ताव के पक्ष में कम-से-कम 50 सदस्यों का होना आवश्यक है।
निंदा प्रस्ताव (Censure motion) यह किसी एक मंत्री या समस्त मंत्रिपरिषद के विरुद्ध लाया जाता है ,यदि यह लोकसभा में पारित हो भी जाए तो सरकार को इस्तीफा नहीं देना पड़ता ।
धन्यवाद् प्रस्ताव (Thanks Motion) प्रत्येक आम चुनाव के पहले सत्र एवं वित्तीय वर्ष के पहले सत्र में राष्ट्रपति सदन को सम्बोधित करते है ,प्रत्युत्तर में सदन में धन्यवाद् प्रस्ताव पारित करते है ।
बजट से सम्बंधित प्रस्ताव–
नीति कटौती प्रस्ताव यदि संसद सदस्य सरकार की ढांचागत नीतियों से नाखुश हैं और बजट में मंत्रालयो को दिए जा रहे अनुदान से किसी प्रकार से असंतुष्ट हैं तो वे यह प्रस्ताव सदन में पेश करते हैं। यह प्रस्ताव विपक्षी पार्टी के सदस्यों की ओर से सदन में रखा जा सकता है। इसके अंतर्गत बजट में मंत्रालय के लिए प्रस्तावित अनुदान को घटाकर एक रुपये करने की मांग की जाती है।
आर्थिक कटौती प्रस्ताव यदि संसद के सदस्यों को लगता है कि केंद्रीय बजट में किसी मंत्रालय को दिया जाने वाला प्रस्तावित अनुदान आवश्यकता से अधिक है तो वह प्रस्तावित अनुदान की रकम को कम करने के लिए सदन में आर्थिक कटौती प्रस्ताव पेश कर सकते हैं।
टोकन कटौती प्रस्ताव इस प्रस्ताव के अंतर्गत लोकसभा सदस्य सरकार की ओर से प्रस्तावित केंद्रीय बजट में किसी ‘अनुदान की मांग’ का विरोध नहीं करते हैं बल्कि केंद्र सरकार की कार्यशैली पर सांकेतिक असंतोष व्यक्त करते हैं। यदि यह प्रस्ताव लोकसभा में पास हो जाता है तो प्रस्तावित मंत्रालय के अनुदान-मांग में से सौ रुपये की कटौती की अनुमति दे दी जाती है।
गिलोटिन प्रस्ताव- जब किसी विधेयक या संकल्प के किसी भाग पर चर्चा नहीं हो पाती तो उस पर मतदान से पूर्व चर्चा करने के लिए इस प्रकार का प्रस्ताव रखा जाता है |
सरकारी विधेयक(Public Bill) वे विधेयक जो सरकार के किसी मंत्री द्वारा सदन में प्रस्तुत किया जाता है उसे सरकारी विधेयक कहते है
गैर -सरकारी विधेयक (Private Bill) वे विधेयक जो किसी संसद के किसी भी सदस्य द्वारा सदन में प्रस्तुत किया जाता है उसे सरकारी विधेयक कहते है।
संविधान के लागू होने के समय मौलिक कर्तव्यों का कोई प्रावधान नहीं था स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक कर्त्तव्यों को संविधान में शामिल किया गया। इसके तहत संविधान में एक नए भाग IV-क को जोड़ा गया। इस नए भाग में अनुच्छेद 51 क जोड़ा गया जिसमें 10 मौलिक कर्त्तव्यों को रखा गया।
वर्ष 2002 में 86वें संविधान संशोधन द्वारा एक और मौलिक कर्त्तव्य(शिक्षा का अधिकार)को जोड़ा गया अब कुल 11 मौलिक कर्तव्य है।आइये एक एक कर समझ इन्हें-
संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें।
स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें।
भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें।
देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव आते हैं, रक्षा करें और संवर्द्धन करें त्तथा प्राणीमात्र के लिये दया भाव रखें।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।
6 से 14 वर्ष तक की आयु के बीच के अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना। यह कर्त्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया।
वर्तमान समय में हमें इसे वास्तविक रूप से समझने और पालन करने की जरुरत है।
भारत देश एक गणतांत्रिक देश है,देश का अपना एक लिखित संविधान है जो दुनिया में सबसे बड़ा है | देश की शासन प्रणाली संविधान के अनुसार चलती है|इस शासन प्रणाली को चलाने हेतु कई संवैधानिक और गैर-संवैधानिक आयोग गठित किये गए है तो आइये जानते है इनके बीच अंतर क्या है —
1-संवैधानिक आयोग (Constitutional Bodies),वे आयोग होते है जिनकी व्याख्या संविधान में किसी अनुच्छेद के तहत की गयी है | ये अपने कार्य स्वतंत्रता पूर्ण करते है |(They are mention in Constitution under some Article,Independently worked, enjoy more power)
2-गैर-संवैधानिक आयोग(Non- Constitutional Bodies ),वे आयोग है जिन्हे संसद द्वारा कानून बनाकर निर्मित किया जाये | यह संवैधानिक आयोगों की तरह स्वतंत्र नहीं होते |यह किसी मंत्रालय के अधीन कार्य करते है | (They are frame by act,pass by Parliament,fall under Ministries.)
आइये इन्हे टेबल के माध्यम से समझते है-
संवैधानिक आयोग(Constitutional Bodies)
अनुच्छेद (Article)
संदर्भ(Brief )
मुख्य(Chief)
भारत का महान्यायवादी (Attorney General of India )
76
यह भारत सरकार का क़ानूनी मामलो का प्रतिनिधि होता है ,इसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है यह संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही में बिना मताधिकार के हिस्सा ले सकता है
K.K Venugopal
भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India)
148
यह लोक वित्त का संरक्षक होता है भारत सरकार द्वारा एवं राज्य सरकार के खर्च का ब्यौरा तैयार करता है जरूरत पड़ने पर अन्य संस्थाओ के खर्च का भी ब्यौरा तैयार करता है जिन्हे सरकार से सहायता प्राप्त है तथा इसकी रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की जाती है|
Rajiv Maharshi
चुनाव आयोग(Election Commission)
324
चुनाव आयोग का कार्य देश में चुनाव(पंचायत और नगर निगम के चुनाव को छोड़कर) ,पार्टियों को मान्यता देना,चुनाव चिह्न देना आदि है
Sunil Arora
राज्य का महाधिवक्ता (Advocate General of State)
165
यह राज्य सरकार के क़ानूनी मामलो का प्रतिनिधि होता है|
————-
वित्त आयोग(Finance Commission)
280
केंद्र और राज्य सरकार में किसको कितना पैसा देना है ,अनुदान देना है ये काम है इनका
N.K. Singh
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC)
315-323
अब ये भी बताना पड़ेगा क्या (IAS,IPS,IRS, )
Arvind Saxena
राज्य लोक सेवा आयोग (State Public Service Commission)
315-323
UPSC का छोटा भाई (हर राज्य का अपना आयोग है) eg. UPPSC
————–
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग(National Commission for SC’s)
338
अनुसूचित जाति के शोषण के विरुद्ध कार्य
Ramshankar Kataria
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति जाति आयोग(National Commission for ST’s)
338A
अनुसूचित जनजाति के शोषण के विरुद्ध कार्य
Rameshwar Oraon
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for OBC’s)
338B
पिछड़ा वर्ग के शोषण के विरुद्ध (हाल ही में 123 संविधान संशोधन बिल 2018 को पारित करके संवैधानिक आयोग का दर्जा मिला है )
Dr. Bhagwan lal Sahni
भाषायी अल्पसंख्यको के लिए विशेष अधिकारी (Special Officer for linguistic minority’s )
350B
जो भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक है ये उनके लिए कार्य करता है
Mukhtar Abbas Naqvi
आइये अब देखते है गैर-संवैधानिक आयोग
गैर-संवैधानिक आयोग (Non- Constitutional Bodies)
संदर्भ(reference)
मुख्य(Chief)
नीति आयोग (NITI Ayog)
1 Jan 2015 को गठित
प्रधानमंत्री
राष्ट्रीय विकास परिषद् (National Development Council)
यह नीति आयोग के सहायता हेतु कार्य करता है
प्रधानमंत्री
केंद्रीय जांच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation )
ये बताना पड़ेगा क्या !
Rishi Kumar Shukla
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग(National Human Right Commission)
मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु
H.L. Dattu
राज्य मानवाधिकार आयोग (State Human Right Commission)
मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु
————————–
केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission )
यह सरकारी अधिकारी/कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के नियंत्रण हेतु कार्य करती है
Sanjay Kothari
केंद्रीय सुचना आयोग (Central Information Commission)
सूचना का अधिकार 2005 के अधिनियम के तहत
Sudhir Bhargav
राज्य सूचना आयोग (State Information Commission)
सूचना का अधिकार 2005 के अधिनियम के तहत
————————-
लोकपाल और लोकायुक्त (Lokpal and Lokpal)
सरकारी उच्च पदों पर आसीन लोगों द्वारा किये गए भ्रष्टाचार की जांच हेतु
Pinaki Chandra Ghose
इस टॉपिक पर एग्जाम में प्रश्न पूछे ही जाते है ,इसे अच्छे से तैयार करले
भारतवर्ष ने कई कलाओ को जन्म दिया है उन्ही में से एक है आत्मा रक्षा एवं योग का सम्मिलित रूप मार्शल आर्ट जिसके विविध रूप समयानुसार भारत की इस भूमि पर उत्पन्न हुए ,आइये एक एक करके इन्हे जाने-
1-कलरीपायट्टु, केरल
कलारी एक मलयालम शब्द है। इसका मतलब है – व्यायामशाला जहां मार्शल आर्ट का अभ्यास कराया जाता है | मान्यताओं के अनुसार कलरीपायट्टु का अविष्कार परशुराम जी ने किया था , इस कला में आत्मरक्षा तथा शारीरिक व्यायाम एवं निहत्थे लड़ना आदि शामिल है| शाओलिन के कुंगफू की उत्पत्ति कलरीपायट्टु द्वारा ही हुई है जिसे दक्षिण भारत से बोधिधर्मा ने जाकर इसकी नींव डाली|
Kalraipayttu
2- सिलम्बम ,तमिलनाडु
यह तमिलनाडु में उत्पन्न एक प्राचीन मार्शल आर्ट है,इसमें लाठी का प्रयोग होता है इसकी उत्पत्ति अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवन मुरुगन से कुण्डलिनी योग सिखने के बाद मानी जाती है |तमिल भाषा के संगम साहित्य के “सिल्पादिक्काराम” में 4th BC में इसके कई हजार साल से अभ्यास करने का उल्लेख मिलता है|
Silambam…..
3-थांग-ता,मणिपुर
इसका अभ्यास मणिपुर के मेइती लोगो द्वारा आरम्भ किया गया | ‘थांग’ का अर्थ तलवार तथा ‘ता’ का अर्थ भाला होता है इसका एक अन्य नाम हुवेन लंगलो भी है 17 वीं सदी में इस कला का उपयोग अंग्रेजों के खिलाफ मणिपुरी राजाओं द्वारा किया गया था, पर बाद में जब अंग्रेजों ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया तो इस तकनीक पर प्रतिबंध लगाया दिया |
Thang-ta
4-गटका,पंजाब
सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव के मुगलों द्वारा मारे जाने के बाद , गुरु हरगोबिंद, उनके बेटे, ने उत्पीड़न से लड़ने के लिए गटका सीखने के विचार का प्रचार किया। बाद में, 17 वीं शताब्दी में, गुरु गोबिंद सिंह, जिन्हें हथियार के गुरु के रूप में जाना जाता है, ने इसे और विकसित किया।
Gatka
5- खोमलईने ,असम
यह कुश्ती का एक रूप है, जिसका अभ्यास मुख्य रूप से असम में बोडो समुदाय के लोग करते हैं।
Khomlaine
6-मल्लखंब ,केरल
मल्लखंब एक पारंपरिक भारतीय खेल है जिसे एक जिमनास्ट एक ऊर्ध्वाधर लकड़ी के खंभे या रस्सी के साथ प्रस्तुत करता है। मल्लखंभ शब्द से निकला है, मल्ल जो एक पहलवान और खंबा को दर्शाता है जिसका अर्थ है एक ध्रुव। मल्लखम्बम का सबसे पहला रिकॉर्ड सोमेश्वरा चालुक्य के मानसोलासा (1135 ईस्वी) में मिलता है। मूल रूप से, मलखंभ का उपयोग पहलवानों के लिए एक सहायक अभ्यास के रूप में किया जाता था।यह महाराष्ट्र आदि राज्यों में भी काफी लोकप्रिय है
Mallakhamb
7-मुकना ,मणिपुर
यह उत्तर-पूर्व भारतीय राज्य मणिपुर की लोक कुश्ती का एक रूप है। यह इंफाल, थौबल और बिष्णुपुर में लोकप्रिय है। मैच एक दूसरे के बेल्ट को पकड़ने वाले प्रतियोगियों के साथ शुरू होते हैं जिन्हें निंगरी कहा जाता है।
Mukna
8- मर्दानी ,महाराष्ट्र
मर्दानी खेल जो महाराष्ट्र में 1600 के दशक की शुरुआत में उत्पन्न हुआ था। मराठाओं को ऐसे गृह योद्धाओं के रूप में जाना जाता था जिनकी मार्शल आर्ट विशिष्ट थी क्योंकि इसमें पाटा (तलवार) और ढाल का उपयोग किया जाता था। मर्दानी खेल शिवाजी के नेतृत्व में प्रमुखता से उभरा, जो मराठा इकाइयों की छापामार रणनीति पर निर्भर था।18 वीं शताब्दी के ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने मराठा लोगों के सैन्य गुणों को मान्यता दी और 1768 में मराठा लाइट इन्फैंट्री रेजिमेंट का गठन किया गया था जो आज भी मौजूद है|
Mardaani
9-थोडा,हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और मनाली में किया जाने वाला एक पारम्परिक मार्शल आर्ट है जो खेल और संस्कृति का मिश्रण है ,इसमें तीर और धनुष का प्रयोग किया जाता है|
Thoda
इसके अलावा , सरित सरक -मणिपुर इंबवून कुश्ती-मिजोरम कुटु-वरिसई(कुश्ती)-दक्षिण भारत मुष्टियुद्ध- वाराणसी परि खंडा(तलवार और ढाल)-बिहार
स्कवै-कश्मीर पाईका अखाडा- ओडिशा वज्रा मुष्टि-कर्नाटक काठी सामु- दक्षिण भारत
आदि युद्ध कला प्रचलित है
आईजीएमए(IGMA- Indigenous Games and Martial Arts ) के तहत आने वाले मार्शल आर्ट सम्बंधित खेल –
कुल संख्या -9
कलरीपायट्टु,केरल
सिलम्बम ,तमिलनाडु
कबड्डी,तेलंगाना
तीरंदाजी,झारखंड
मल्लखम्ब ,महाराष्ट्र
मुकना,इम्फाल
थांग-ता ,इम्फाल
खोमलइने,असम
गटका,पंजाब
IGMA,भारतीय खेल प्राधिकरण(Sport Authority of India) के तहत कार्य करता है
This article is too much important for the examination.
भारतीय संस्कृति और सभ्यता विविधताओं से भरी पड़ी है इनकी परिकल्पनाएं असीमित है।
कला के अद्भुत और अद्वितीय रूप भारत वर्ष के कोने कोने में प्रचलित है ।आइए जानते है इनमे से कुछ प्रमुख कलाओ को
1-गुलाबी मिनाकारी
गुलाबी मिनाकारी भारत के सबसे दुर्लभ शिल्पों में से एक है, जिसका अभ्यास वाराणसी के गेल घाट के पास के उपनगरों में किया जाता है। मिनाकारी ईरानी कला रूप है और इसमें विभिन्न रंगों को जोड़कर धातुओं की सतह को रंगना शामिल है। यह कला 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में मुगल काल के दौरान ईरान से वाराणसी शहर में लाई गई थी। मीना ’शब्द फारसी शब्द मीनू’ का स्त्री रूप है और जिसका अर्थ है ‘स्वर्ग ’। यह स्वर्ग के नीला रंग को दर्शाता है। वाराणसी में, यह आभूषण और घर की सजावट के सामान पर अभ्यास किया जाता है। यह सोने पर सबसे सुंदर रूप से दिखाता है | मिनाकारी को तीन रूपों में लोकप्रिय रूप से पाया जा सकता है- एक रंग ख़ुला मीना जिसमें केवल सोने की रूपरेखा उजागर होती है और एक पारदर्शी रंग का उपयोग किया जाता है; पंच रंगी मीणा जिसमें लाल, सफेद, हरा, हल्का नीला और गहरा नीला पांच रंगों का प्रयोग किया जाता है; गुलाबी मीना जिसमें गुलाबी रंग प्रमुख है। गुलाबी मिनाकारी के लिए वाराणसी अत्यधिक लोकप्रिय है।
Gulabi Meenakari
2-चिकनकारी
चिकनकारी लखनऊ की प्रसिद्ध शैली है कढाई और कशीदा कारी की। हम भारतीय चिकनकारी के बारे में एक ग्रीक यात्री मेगस्थनीज ने भारतीयों द्वारा पुष्पित मलमल के उपयोग का उल्लेख किया है।एक अन्य मान्यतानुसार कहा जाता है कि मुगल सम्राट जहांगीर की पत्नी नूरजहां इसे ईरान से सीख कर आई थीं
Lucknavi Chikankari
3-फुलकारी कढ़ाई यह कला पंजाब में प्रचलित है इसके उत्त्पत्ति के बारे में कई मत है कैसे कुछ मान्यताये ये है की ये ईरान से भारत आया जहा इसे गुलकारी कहते है गुल का अर्थ फूल होता है और करि का अर्थ कढ़ाई ,और कुछ का मानना है कि यह पंजाब में ही इसकी उत्पत्ति हुई । आज के समय में फुलकारी कढ़ाई विश्व भर में प्रसिद्ध है|
Phulkari
4-बंधेज यह गुजरात कि प्रसिद्ध कला है जो कपड़ो पर कि जाती है यह एक जटिल एवं लम्बी प्रक्रिया है
Bandhej
5-फानेक
यह मणिपुर में प्रचलित है.फानेक ज्यादातर हस्तनिर्मित होते हैं और केवल ब्लॉक रंगों या धारियों में उपलब्ध होते हैं। फनक , इंनाफी और सरोंग्स, संस्कृति की मणिपुरी शैली को शामिल करते हैं। महिलाओं के लिए एक पारंपरिक मणिपुरी पोशाक मे है|यह लुंगी के सामान होता है |
Phaanek Manipur
6-कलमकारी
कलमकारी सूती कपड़ों पर की जाती है। इस कला में हाथो से सूती कपड़ों पर अनेक प्रकार की कृतियां उकेरी जाती है, इसी कारण इसे हस्तकला की सूची में रखा गया है। यह कला प्राचीन आंध्रप्रदेश से है, पर पूरे देश में विख्यात है। मुख्यतः दो शहर ऐसे है,जहाँ कलमकारी की जाती है । श्रीकलाहस्ती और मछलीपुरम यह दो जगह आंध्र प्रदेश में ऐसी है, जहाँ आपको हर व्यक्ति ऐसा मिलेगा जो कलमकारी का हुनर अपने हाथों में समेटे रखता है।
इन दोनों जगह पर होने वाली कलमकारी में फर्क बस इतना से है, कि श्रीकलाहस्ती में कलमकारी हाथों से होती है, वही अगर हम मछलीपुरम की बात करें, तो वहाँ पर ब्लॉक या ठप्पो के साथ की जाती है ।
Kalamkari
7-मधुबनी यह मिथिला बिहार में प्रचलित है,लेकिन अब यह कला पुरे विश्व में प्रसिद्ध है पिछले वर्ष ही जापान ने अपने यहाँ के बुलेट ट्रेन पर मधुबनी चित्रकारी कराने के लिए भारत सरकार से आग्रह किया था|
Madhubani Art
8-चंदेरी यह मध्य प्रदेश में प्रचलित एक पारम्परिक तकनीक है ,चंदेरी कपड़े का निर्माण रेशम और सुनहरे ज़री में पारंपरिक सूती धागे में बुनाई के द्वारा किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप झिलमिलाती बनावट का निर्माण होता है|
Chanderi
9- कांजीवरम
चोल वंश के एक प्रसिद्ध राजा ने 985 और 1014 के बीच कांचीपुरम पर शासन किया, जिन्होंने रेशम व्यापार की पहल की। यह कृष्ण-देव राय के शासनकाल के दौरान था, जब आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध बुनाई समुदाय, देवांगस और सालिगर्स, कांचीपुरम में चले आये थे| सिल्क साड़ी का प्रमुख उत्पादन केंद्र हने के कारण कांचीपुरम को सिल्क सिटी के नाम से भी जाना जाता हैं |कांचीवरम साड़ी भारत सरकार द्वारा भौगोलिक उपदर्शक(Geographical indicator) का स्टेटस भी प्राप्त कर चुकी है| प्रत्येक कांजीवरम साड़ी के निर्माण में श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले मलबरी सिल्क का प्रयोग किया जाता है|कांजीवरम सिल्क साड़ियाँ पारंपरिक हाथ की बुनाई से तैयार की जाती हैं जिसे कोरवई तकनीक भी कहते हैं |
कांचीवरम साड़ी के ज़री की बुनाई में असली चांदी एवं सोने का प्रयोग किया जाता हैं|
एक साड़ी को तैयार करने में लगभग हफ्ते का समय लगता है |
making of kanjiwaram
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भारतीय समाज में पारंपरिकता का विशेष स्थान है । परंपरा एक सहज प्रवाह है ।। नाटक अपने आप में संपूर्ण विधा है, जिसमें अभिनय, संवाद, कविता, संगीत इत्यादि एक साथ उपस्थित रहते हैं । परंपरा में नाटक एक कला की तरह है । सभी पारंपरिक भारतीय नाट्यशैलियों में गायन की प्रमुखता है |
यह क्षेत्रीय समाज का एक दर्पण प्रस्तुत करती है,आइये जानते है हमारे भारत के विविध नाट्यकलाओं को
1-भांड-पाथर
यह कश्मीर का पारंपरिक नाट्य है । यह नृत्य, संगीत और नाट्यकला का अनूठा संगम है । व्यंगय मज़ाक और नकल उतारने हेतु इसमें हँसने और हँसाने को प्राथमिकता दी गयी है । संगीत के लिए सुरनाई, नगाड़ा और ढोल इत्यादि का प्रयोग किया जाता है । मूलत: भांड कृषक वर्ग के हैं, इसलिए इस नाट्यकला पर कृषि-संवेदना का गहरा प्रभाव है ।
Artist performing Bhand Pather
2– स्वांग
मूलत: स्वांग में पहले संगीत का विधान रहता था, परन्तु बाद में गद्य का भी समावेश हुआ । इसमें भावों की कोमलता, रससिद्धि के साथ-साथ चरित्र का विकास भी होता है । स्वांग को दो शैलियां (रोहतक तथा हाथरस) उल्लेखनीय हैं ।
रोहतक शैली में हरियाणवी (बांगरू) भाषा तथा हाथरसी शैली में ब्रजभाषा प्रधान है ।
Artist performing Swang
3– नौटंकी
प्राय: उत्तर प्रदेश से सम्बंधित है । इसकी कानपुर, लखनऊ तथा हाथरस शैलियां प्रसिद्ध हैं । इसमें प्राय: दोहा, चौबोला, छप्पय, बहर-ए-तबील छंदों का प्रयोग किया जाता है । पहले नौटंकी में पुरुष ही स्त्री पात्रों का अभिनय करते थे, अब स्त्रियां भी काफी मात्रा में इसमें भाग लेने लगी हैं ।
Artist Performing Naotanki
4- रासलीला
कृष्ण की लीलाओं का अभिनय होता है । ऐसे मान्यता है कि रासलीला सम्बंधी नाटक सर्वप्रथम नंददास द्वारा रचित हुए इसमें गद्य-संवाद, गेय पद और लीला दृश्य का उचित योग है ।
Artist Performing Raslila
5-भवाई
गुजरात और राजस्थान की पारंपरिक नाट्यशैली है । इसका विशेष स्थान कच्छ-काठियावाड़ माना जाता है । इसमें भुंगल, तबला, ढोलक, बांसुरी, पखावज, रबाब, सारंगी, मंजीरा इत्यादि वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है ।
Bhavai Gujrat……
6- जात्रा
देवपूजा के निमित्त आयोजित मेलों, अनुष्ठानों आदि से जुड़े नाट्यगीतों को ‘जात्रा’ कहा जाता है । यह मूल रूप से बंगाल में पला-बढ़ा है । वस्तुत: श्री चैतन्य के प्रभाव से कृष्ण-जात्रा बहुत लोकप्रिय हो गयी थी ।
Jatra – West Bengal
7– माच
मध्य प्रदेश का पारंपरिक नाट्य है । ‘माच’ शब्द मंच और खेल दोनों अर्थों में इस्तेमाल किया जाता है । माच में पद्य की अधिकता होती है । इसके संवादों को बोल तथा छंद योजना को वणग कहते हैं । इसकी धुनों को रंगत के नाम से जाना जाता है ।
म से माच, म से मध्य प्रदेश,म से मामा, और म से मुख्यमंत्री, बुझे की नाही!!!
8-भाओना
असम के अंकिआ नाट की प्रस्तुति है । इस शैली में असम, बंगाल, उड़ीसा, वृंदावन-मथुरा आदि की सांस्कृतिक झलक मिलती है । इसका सूत्रधार दो भाषाओं में अपने को प्रकट करता है- पहले संस्कृत, बाद में ब्रजबोली अथवा असमिया में ।
Bhaona, Assam
9-तमाशा
महाराष्ट्र की पारंपरिक नाट्यशैली है । । तमाशा लोकनाट्य में नृत्य क्रिया की प्रमुख स्त्री कलाकार होती है । वह ‘मुरकी’ के नाम से जानी जाती है ।
10-दशावतार
कोंकण व गोवा क्षेत्र का अत्यंत विकसित नाट्य रूप है । पालन व सृजन के देवता-भगवान विष्णु के दस अवतारों को प्रस्तुत करते हैं । दस अवतार हैं- मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण (या बलराम), बुद्ध व कल्कि । दशावतार का प्रदर्शन करने वाले लकड़ी व पेपरमेशे का मुखौटा पहनते हैं ।
A still of Dashavatar with meme.
11- कृष्णाट्टम
केरल का लोकनाट्य 17वीं शताब्दी के मध्य कालीकट के महाराज मनवेदा के शासन के अधीन अस्तित्व में आया । कृष्णाट्टम आठ नाटकों का वृत्त है, जो क्रमागत रुप में आठ दिन प्रस्तुत किया जाता है । नाटक हैं-अवतारम्, कालियमर्दन, रासक्रीड़ा, कंसवधाम् स्वयंवरम्, वाणयुद्धम्, विविधविधम्, स्वर्गारोहण ।
Krishnattam…look like kathkali naaa…yes …
12- मुडियेट्टु
केरल के पारंपरिक लोकनाट्य का उत्सव वृश्चिकम् (नवम्बर-दिसम्बर) मास में मनाया जाता है । यह प्राय: देवी के सम्मान में केरल के केवल काली मंदिरों में प्रदर्शित किया जाता है । यह असुर दारिका पर देवी भद्रकाली की विजय को चित्रित करता है ।
Mudiyettu
13- कुटियाट्टम
केरल का सर्वाधिक प्राचीन पारंपरिक लोक नाट्य रुप है, संस्कृत नाटकों की परंपरा पर आधारित है । इसमें ये चरित्र होते हैं- चाक्यार या अभिनेता, नांब्यार या वादक तथा नांग्यार या स्त्रीपात्र । । सिर्फ विदूषक को ही बोलने की स्वंतत्रता है ।
Kutiyattam
14-यक्षगान
कर्नाटक का पारंपरिक नाट्य रूपमिथकीय कथाओं तथा पुराणों पर आधारित है । मुख्य लोकप्रिय कथानक, जो महाभारत से लिये गये हैं, इस प्रकार हैं : द्रौपदी स्वयंवर, सुभद्रा विवाह, अभिमन्युवध, कर्ण-अर्जुन युद्ध तथा रामायण के कथानक हैं : वलकुश युद्ध, बालिसुग्रीव युद्ध और पंचवटी ।
((नाम में गान होने से संगीत मत समझ लीजियेगा ,नाटक है ये –एग्जाम में कन्फुजियना मत) )
Yakshgan …
15- तेरुक्कुत्तु
तमिलनाडु की पारंपरिक लोकनाट्य कलाओं में अत्यंत जनप्रिय माना जाता है । इसका सामान्य शाब्दिक अर्थ है- सड़क पर किया जाने वाला नाट्य । यह मुख्यत: मारियम्मन और द्रोपदी अम्मा के वार्षिक मंदिर उत्सव के समय प्रस्तुत किया जाता है । इस प्रकार, तेरुक्कुत्तु के माध्यम से संतान की प्राप्ति और अच्छी फसल के लिए दोनों देवियों की आराधना की जाती है ।
Therututtu
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हर हर महादेव —- हां जी नृत्य कला में निपुण है भोले बाबा
आइये जानते है कितने प्रकार है हमारे यहाँ शास्त्रीय नृत्य
1-मोहिनीअट्टम, केरल
मोहिनीअट्टम, केरल की महिलाओ द्वारा किया जाने वाला नृत्य है ,शुरुआत में केरल के मंदिरो में यह नृत्य किया जाता था,मान्यता के अनुसार अमृत मंथन के दौरान दुग्ध सागर से निकले हुए अमृत को असुरो से बचाने हेतु भगवान विष्णु ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण किया था जिसे “मोहिनी” कहा जाता है और भष्मासुर के विनाश हेतु भी भगवान् विष्णु को यह रूप लेना पड़ा था |
सुनंदा नायर एक प्रसिद्ध मोहिनीअटट्म नृत्य कलाकार है
Sunanda Nair– performing Mohiniattam
2-भरत नाट्यम, तमिलनाडु
भरत नाट्यम ,मुख्य रूप से दक्षिण भारत की नाट्यशैली है ,तथा यह तमिलनाडु राज्य का शास्त्रीय संगीत है,आरम्भ में मंदिरो में देवदासियों द्वारा किया जाता था| यह भरत मुनि के नाट्य शास्त्र पर आधारित है|
इसमें चेहरे की भाव भंगिमा का विशेष ध्यान रखा जाता है भरत नाट्यम की तकनीक में हाथ, पैर, मुख व शरीर संचालन के समन्वयन के 64 सिद्धांत हैं, मल्लिका साराबाई तथा यामिनी कृष्णमूर्ति इस नृत्य की प्रसिद्ध कलाकार है
Mallika Sarabai performing Bharatnatyam
3-कथक नृत्य, उत्तर प्रदेश
कथक नृत्य, उत्तर प्रदेश का शास्त्रीय नृत्य है। कथक शब्द का अर्थ कथा को थिरकते हुए कहना है।
कथक राजस्थान और उत्तर भारत की नृत्य शैली है। यह बहुत प्राचीन शैली है क्योंकि महाभारत में भी कथक का वर्णन है। मध्य काल में इसका सम्बन्ध कृष्ण कथा और नृत्य से था। मुग़लकाल में यह दरबार में किया जाने लगा। वर्तमान समय में बिरजू महाराज इसके बड़े व्याख्याता रहे हैं। हिन्दी फिल्मों में अधिकांश नृत्य इसी शैली पर आधारित होते हैं।(आमी जे तोमार, छीन छीन छीन -अभी याद आएगा फोटो देख के)
यह नृत्य कहानियों को बोलने का साधन है। इस नृत्य के तीन प्रमुख घराने हैं। कछवा के राजपुतों के राजसभा में जयपुर घराने का, अवध के नवाब के राजसभा में लखनऊ घराने का और वाराणसी के सभा में वाराणसी घराने का जन्म हुआ।
4- कथकली , केरल
कथकली मालाबार, कोचीन और त्रावणकोर के आस पास प्रचलित नृत्य शैली है। केरल की सुप्रसिद्ध शास्त्रीय रंगकला है रंगीन वेशभूषा पहने कलाकार गायकों द्वारा गाये जानेवाले कथा संदर्भों का हस्तमुद्राओं एवं नृत्य-नाट्यों द्वारा अभिनय प्रस्तुत करते हैं। इसमें कलाकार स्वयं न तो संवाद बोलता है और न ही गीत गाता है। कथकली के साहित्यिक रूप को ‘आट्टक्कथा’ कहते हैंकथकली का रंगमंच ज़मीन से ऊपर उठा हुआ एक चौकोर तख्त होता है। इसे ‘रंगवेदी’ या ‘कलियरंगु’ कहते हैं
Kathakali
5-कुचिपुड़ी आंध्र प्रदेश
कुचिपुड़ी आंध्र प्रदेश राज्य का शास्त्रीय नृत्य है इस नृत्य का नाम कृष्णा जिले के दिवि तालुक में स्थित कुचिपुड़ी गाँव के ऊपर पड़ा, जहाँ के रहने वाले ब्राह्मण इस पारंपरिक नृत्य का अभ्यास करते थे। इसका मूल विषय स्वर्ग पारिजात वृक्ष लाने हेतु कृष्णा और सत्यभामा के बीच का संवाद है| इसकी शुरुआत सिद्धेन्द्र योगी ने भामाकलापम के नाम से की थी|
6-ओडिसी ,ओडिशा
ओडिसी नृत्य को पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सबसे पुराने जीवित शास्त्रीय नृत्य रूपों में से एक माना जाता है। उड़ीसा के पारम्परिक नृत्य, ओडिसी का जन्म मंदिर में नृत्य करने वाली देवदासियों के नृत्य से हुआ था।
ओडिसी नृत्य का उल्लेख शिला लेखों में मिलता है, इसे ब्रह्मेश्वर मंदिर के शिला लेखों में दर्शाया गया है साथ ही कोणार्क के सूर्य मंदिर के केन्द्रीय कक्ष में इसका उल्लेख मिलता है।ओडिसी नृत्य भगवान कृष्ण के प्रति समर्पित है और इसके छंद संस्कृति नाटक गीत गोविंदम से लिए गए हैं, जिन्हें प्रेम और भगवान के प्रति समर्पण को प्रदर्शित करने में उपयोग किया जाता है।
इसमें त्रिभंग पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है, जिसका अर्थ है शरीर को तीन भागों में बांटना, सिर, शरीर और पैर; मुद्राएं और अभिव्यक्तियाँ भरत नाट्यम के समान होती है।यह एक कोमल, कवितामय शास्त्री नृत्य है जिसमें उड़ीसा के परिवेश तथा इसके सर्वाधिक लोकप्रिय देवता, भगवान जगन्नाथ की महिमा का गान किया जाता है।
सोनाली मानसिंह एक प्रसिद्ध ओडिसी नृत्य कलाकार है
Sonal Mansingh Performing Oddisi
7-मणिपुरी ,मणिपुर
मणिपुरी नृत्य भारत के उत्तरी-पूर्वी भाग में स्थित राज्य मणिपुर में उत्पन्न हुआ । यह भारतीय शास्त्रीय नृत्यों की विभिन्न शैलियों में से प्रमुख नृत्य है ।लाई हारोबा नृत्य का प्राचीन रूप है, जो मणिपुर में सभी शैली के नृत्य के रूपों का आधार है । इसका शाब्दिक अर्थ है- देवताओं का आमोद-प्रमोद | मणिपुर में नृत्य धार्मिक और परम्परागत उत्सवों के साथ जुड़ा हुआ है । यहां शिव और पार्वती के नृत्यों तथा अन्य देवी-देवताओं, जिन्होंने सृष्टि की रचना की थी, की दंतकथाओं के संदर्भ मिलते हैं ।
मणिपुरी रास में राधा, कृष्ण और गोपियां मुख्य पात्र होते हैं ।
Manipuri Classical Dance
8- सत्रिया ,असम
महान संत शकर देव ने सत्र परंपरा को स्थापित किया | सत्तरिया नृत्य में भक्ति और आध्यात्म का भाव प्रधान है | वर्ष 2000 में इस नृत्य को शास्त्रीय नृत्य में शामिल किया गया कृष्णाक्षी कश्यप एक प्रसिद्ध सत्रिया नृत्य कलाकार है
Krishankshi Kashyap performing Satriya with Assame Costume
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